भोर की पहली पहर के साथ
चल पड़ता है मेरा शहर
नींद से जागी अलसाई सी सड़कों पर
तेज रफ़्तार से दौड़ पड़ता है मेरा शहर
आँखों में ढ़ेरों सपने और चहरे पर थकान लिए
हर सुबह यूँ ही निकल पड़ता है मेरा शहर
भोर की पहली पहर के साथ
चल पड़ता है मेरा शहर
जाने क्या पाने की चाहत में
कहीं पहुंचने की हड़बड़ाहट में
सड़कों की भीड़ और कोलाहल में
धीरे-धीरे गुम होता मेरा शहर
भोर की पहली पहर के साथ
चल पड़ता है मेरा शहर
शाम ढले फुरसत के लम्हों में
ताश खेलता नज़र आता है मेरा शहर
चलों कहीं तो जीता है मेरा शहर
भोर की पहली पहर के साथ
चल पड़ता है मेरा शहर
देर रत थक कर भारी क़दमों के साथ
रात के आगोश में सिमट कर
दूर तक फैली इन वीरान सड़कों पर
ख़ामोशी को ओढ़े सो जाता है मेरा शहर
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