जम्मू कश्मीर के पुलवामा में एक बार फिर सेना पर पत्थर बरसाने की घटना सामने आई है। 4 दिन पहले जिस पुलवामा में शहीद हुए सैनिक की शव यात्रा में लाखों की संख्या में कश्मीरी एकत्र होकर भारत माता की जय और पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे। वहीं अचानक सैनिकों पर पत्थर क्यों बरसने लगे ? ये ख़याल तो आपके मन में भी आया होगा। दरअसल मुंह पर कपडा बांधे, हाथों में पत्थर लिये और अपनी पहचान छुपाये ये मुठी भर देशद्रोही हैं जो अक्सर आपको कश्मीर की सडकों और गलियों में नजर आतें हैं। अब आप ये पुछेगे की आखिर अगर ये मुठी भर लोग ही हैं तो ये हमारी सेना पर हावी कैसे हो जाते है ? तो इसका जवाब है आज तक कश्मीर को लेकर रही राजनीति इच्छा शक्ति की कमी और कश्मीर के लोकल पाॅलीटिशियन द्वारा अपने फायदे के लिये इनको संरक्षण प्रदान करना और समय समय पर अपनी रजनीति को चमकाने के लिए इनका इस्तमाल करना। हमारी सेना चाहे तो इन मुठी भर लोगों को बहुत ही आसानी से निपटा सकती है पर उन्हे ऐसा करने की आजादी मिलती ही नहीं। अगर सेना अपने बचाव में कुछ करती भी है तों राज्य सरकार से लेकर सारे मानवधिकार वादी सेना के खिलाफ खडे नजर आते हैं। सेना अगर अपने जान की हिफाजत में पत्थर बाजों पर गोलियां चलाए तो सेना के जवानो पर ही एफ आई आर दर्ज कर दिया जाता है जिसके बचाव में सेना के जवान के पिता को कोर्ट का दरवाजा बजाना पडता है जो खुद कारगिल के युद्ध में अपनी वीरता के परचम लहरा चुके हों। ये हमारा दुरभाग्य ही है कि जहां हमें देशद्रोेहियों को सजा देनी चाहिए वहां हमारा देश अपने ही रक्षाकों को शक के दायरे में खडा कर देता है। क्यों हमारी सेना के हांथ बाॅडर पर तो खोल दिए गये हैं पर अपने ही देश के अंदर फैले आतंकवाद के सामने बांध दिए गए हैं। क्या सिर्फ इस लिए क्यों कि सीमा पार से जो आ रहें है वो हमारे दुशमन है और ये जो पत्थर बाज है वो हमारे अपने हैं । क्या सच में ये हमारे अपने हैं ? या अपनों की भेश में छुपे जयचंद। क्या हमें अपने इतिहास से सबक नहीं लेना चाहिए ? जब देश ने एक जयचंद होने का खामियाजा इतना भुक्ता है तो ये तो संख्या में उससे कहीं ज्यादा हैं। अगर समय रहतें इन्हें नहीं रोका गया तों देश को इसकी भारी कीमत चुकानी पडेगी।
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