हाल ही में जाम्मू कश्मीर में सैनिकों के कैम्प पर हुए आतंकवादी हमले में हमारे 6 बहादुर जवान शहीद हो गये। जिनमें से 4 जवान जम्मू कश्मीर की मिट्टी से ही तालुक रखतें थे। ये पहली बार नहीं है कि जाम्मू कश्मीर से तालूक रखने वाले किसी सैनिक की आतंकवादियों के साथ हुई मुठभेड में सहादत हुई हो। जम्मू कश्मीर की जिस मिट्टी से बुरहान वानी जैसे आतंकी निकलते है उसी मिट्टी से मोहम्मद इकबाल,मंजूर अहमद, हबीबुल्लाह कुरैशी जैसे बहादुर देशभक्त भी निकलते है जो इस देश की सुरक्षा की खातिर अपनी जान दाव पर लगा देते है पर क्यों इनसे आम कश्मीरि की पहचान को जोड कर नहीं देखा जाता। जब एक आतंकवादी को पूरे कश्मीर की आवाज बना दिया जाता है तो फिर इन शहीदों की अंतिम यात्रा में लाखें की संख्या में शामिल हुए कश्मीरियों की आवाज को क्या कहेंगे ? जो आतंकवाद और पाकिस्तान को एक सुर में मुर्दा बाद बोल रहें है। क्या मोहम्मद इकबाल शेख की शव यात्रा में हजारों की संख्या में शामिल आम कश्मीरि बदलते कश्मीर की तसवीर नहीं हैं ? क्यों आज तक भारत के बुद्धिजीवियों को केवल एक खास विचार धारा को समर्थन कर रहे कश्मीरियों का र्दद ही सुनाई देता रहा है और उन्ही आवाजों को कश्मीर की आवाज बनाकर पूरे भारत में प्रसारित किया गया। बुरहान वानी के जनाजे में शामिल हुई भीड को देखने वाली बुद्धिजीवी नजरों ने मोहम्मद इकबाल शेख की शव यात्रा में उमडे जन सैलाब को देखकर अपनी आंखें क्यों मुंद ली हैं। इस आतंकी हमले में शाहीद हुए जम्मू कश्मीर के 4 सैनिको में से एक सैनिक त्रारल गांव का रहने वाला था और ये वही गांव है जिस गांव का बुुुरहान वानी था। इससे आप कश्मीर की वास्तविकता का अंदाजा खुद ही लगा सकते हैं। खैर इस पूरे घटना क्रम में एक बात तो अच्छी हुई और वो ये कि इतने दिनों से जो आम कश्मीरि इन आतंकियों के डर से अपनी जुबान बंद करे बयठे थे वो अब खुल गयी है और इन कश्मीरियों में इस विश्वास और जज़्बे को पैदा करने वाले हमारे देश के वीर जवान ही है जिनकी सुरक्षा में आज आम कश्मीरि अपने मन की बात कह पा रहा है।
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