दिल्ली शहर के इस शोर शराबे के बीच सदियों से यू ही खामोश खडी ये इमारत मानो अपसे कुछ कहना चाहती है। जब आप अपनी नजरे उठाकर इस इमारत को पहली बार देखते हैं तो इस इमारत की बेमिशाल सादगी आपके भीतर तक उतर जाती है। बेशुमार खूबसूर्ती अपने अंदर समेटे ये मकबरा अपने गुजरे गौरव शालि इतिहास की गवाही देता है।
दिल्ली जैसे तेल रफतार शहर में जहां वक्त अपनी गती से तेज चलता हो वहां इस इमारत को देखकर लगता है मानो समय यहां थम सा गया है और कई सौ सालों से वक्त यहां से गुजरा ही ना हो। आज भी ये इमारत आपको पहली नजर में अपना बना लेगी।
सर्द धूप की आगोंश में छुपा हुमायूं का ये मकबरा भी मुहब्बा की कभी ना खत्म होने बाली दास्ता बयां करता है। हम सभी ताजमहल को तो एक शहंशा के द्वारा अपनी बेगम को दी गई मुहब्बत की निशानी के तौर पर तों जानते हैं पर उससे भी बहुत पहले एक बेगम के द्वारा अपने शहंशाह को दी गयी इस प्यार की भेंट से अंजान है। जिस इमारत के स्वरूप को देखकर ताजमहल बना आज वही इमारत ताजमहल की प्रसिद्धी के आगे कही खो सी गयी है।
पर यकीन मानिये अगर आप दिल्ली आयें तो एक बार इस इमारत को देखने जरूर जायें। यहां की सीढियों पर बैठकर आप गुजरे इतिहास के एक-एक लम्हे को मेहसूस कर सकते हैं।
दिल्ली जैसे तेल रफतार शहर में जहां वक्त अपनी गती से तेज चलता हो वहां इस इमारत को देखकर लगता है मानो समय यहां थम सा गया है और कई सौ सालों से वक्त यहां से गुजरा ही ना हो। आज भी ये इमारत आपको पहली नजर में अपना बना लेगी।
सर्द धूप की आगोंश में छुपा हुमायूं का ये मकबरा भी मुहब्बा की कभी ना खत्म होने बाली दास्ता बयां करता है। हम सभी ताजमहल को तो एक शहंशा के द्वारा अपनी बेगम को दी गई मुहब्बत की निशानी के तौर पर तों जानते हैं पर उससे भी बहुत पहले एक बेगम के द्वारा अपने शहंशाह को दी गयी इस प्यार की भेंट से अंजान है। जिस इमारत के स्वरूप को देखकर ताजमहल बना आज वही इमारत ताजमहल की प्रसिद्धी के आगे कही खो सी गयी है।
पर यकीन मानिये अगर आप दिल्ली आयें तो एक बार इस इमारत को देखने जरूर जायें। यहां की सीढियों पर बैठकर आप गुजरे इतिहास के एक-एक लम्हे को मेहसूस कर सकते हैं।
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