Uniform Civil Code Se Dar Kyu? यूनिफोर्म सिविल कोड से डर क्यों ?

देश की सर्वोच्च अदालत द्वारा तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिये जाने के बाद से देश में यूनिफोर्म सिविल कोड को लेकर बहस फिर जोरों पर है। इस देश का आम नागरिक चाहता है कि वो ऐसे देश में रहे जहां र्धम के आड में किसी भी व्यक्ति के मूल अधिकारों का हनन ना हो, पर वो कौन लोग हैं  जिन्हे   इस देश में यूनिर्फोम सिविल कोड के लागु हो जाने का इतना पड़ सता रहा है। उन्हें क्यों ऐसा लगता है कि इस देश में समान नागरिक सहिंता लागू  हो जाने पर उनका धर्म खतरे में पड़ जाएगा। खैर जिन लोगों को एसा लगता है कि ये कानून उनके धर्म पर हमला है उनकी  दुविधा मैं दूर कर देती हूँ ।
Uniform Civil Code

 समान नागरिक सहिंता का अर्थ होता है एक ऐसा कानून जो देश के सभी लोगों पर समान रूप से लागू होता है। यह किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है। यूनिफार्म सिविल कोड लागू होने का अर्थ  है शादी, तलाक और जमीन जायदाद के बंंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होना। फिलहाल हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ के तहत करते हैं। सबसे पहले तो हम ये जानते हैं कि इस कानून के दायरे में कौन-कौन से मुद्दे शामिल हैं
1 विवाह
2 संपत्ति व विरासत का उत्तराधिकार
3 दत्तक ग्रहण

सिर्फ ये तीन मुद्दे ही हैं जो इस कानून के दायरे में आते हैं। अब ये सोचने वाली बात है कि इन तीनो विषयों पर कानून बनाने से धर्म पर संकट कैसे आ सकता है। इस लिये किसी भी दलील के जरिये इसका विरोध करना कतई जायज नहीं हो सकता। समय के साथ हमेशा से ही धर्म और कानून में सार्थक परिवर्तन होते रहें हैं, तो इस बार इतनी घबराहट क्यों ? ऐसा नहीं है कि इस विषय पर आपत्ति सिर्फ मुस्लिम समाज को है, इसाई और पारसी भी इसे खुले गले से अपनाने के लिये तैयार नहीं हैं।  आजादी के बाद जब हिंदू सिविल कोड बनाया गया तब हिंदू समाज से ऐसी ही विरोध की आवाजें उठी थीं पर उन सब को दर्किनार करके इस बिल को लागु किया गया और आज इसी का परिणाम है कि हिंदू समाज में सदियों से चली आ रही कुरीतियों '' स्त्रियों का पुनर विवाह का वर्जित होना, बाल विवाह, स्त्रियों को उत्तराधिकार से वंचित रखना, विवाहित स्त्री का सम्पत्ति में अधिकार ना होना,पुरूषों में बहुपत्नी प्रथ का होना '' का अंत संभव हो पाया। इस लिए हर र्धम में समय के साथ आई बुराईयों का समाधान आवश्यक है। इस विषय को हम धर्म के चश्में से ना देखें तो ही अच्छा होगा।

बहुत से लोगों को एसा लगता है कि यूनिर्फोम सिविल कोड का मतलब है हिंदू सिविल कोड का सभी धर्मों पर लागू होना, पर एसा बिलकुल नहीं है। इसका अर्थ है हर धर्म के लोगों के लिए एक समान कानून होना। इस कानून का सबसे बड़ा फायदा महिलाओं के लिए होगा इस कनून के आने से महिलाओं के साथ धर्म के आधार पर होने वाले भेद-भाव पर रोक लगेगी और देश की हर महिला को आगे बढने का समान अवसर मिलेगा। वैसे भी हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म एक ही सिविल कोड के दायरे में आते हैं तो बाकी धर्मों के लिये अलग-अलग कानून क्यों ? दुनिया में बहुत से एसे धर्मनिरपेक्ष देश हैं जहां समान नागरिक सहिंता पहले से लागु है जैसे . पोलैण्ड, नार्वे, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, यूएसए, यूके, कनाडा, चीन, रूस आदि। भारत भी एक धर्मनिरपेक्ष देश है तो धर्मिक आधार पर बने कानूनों की इस देश में कोई जगह कैसे हो सकती है। आधुनिक भारत में हम सब को धर्म से उपर उठकर सोचना होगा तभी इस देश के विकास में हर नागरिक का योगदान होगा।

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